Minimum Balance Limit Fixed : पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बैंकिंग प्रणाली में खाताधारकों के हित में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इन परिवर्तनों में सर्वाधिक चर्चित सुधार न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने से संबंधित नियमों में छूट है। देश के प्रमुख वित्तीय संस्थानों ने अपनी नीतियों में संशोधन करके आम जनमानस को काफी राहत प्रदान की है। यह पहल खासकर उन नागरिकों के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुई है जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है अथवा जिनकी मासिक कमाई सीमित है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की उदार नीति
भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 2020 से ही अपने बचत खातों के लिए न्यूनतम राशि रखने की बाध्यता को समाप्त कर दिया है। इस ऐतिहासिक निर्णय के पश्चात से SBI में खाता रखने वाले लोगों को अपने अकाउंट में किसी निश्चित धनराशि को बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं रही। यदि किसी ग्राहक के खाते में एक भी रुपये की शेष राशि न हो, तब भी बैंक उस पर किसी प्रकार का दंड शुल्क या जुर्माना नहीं वसूलता है।
यह व्यवस्था मुख्य रूप से निम्न आय वर्ग के परिवारों, विद्यार्थियों, गृहणियों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित हुई है। इस नीति के माध्यम से बैंकिंग सुविधाएं समाज के व्यापक वर्ग तक पहुंची हैं और देश में वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन मिला है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के इलाकों में लोगों ने इस सुविधा का भरपूर लाभ उठाया है।
पंजाब नेशनल बैंक का जनहितकारी फैसला
पंजाब नेशनल बैंक ने भी अगस्त 2025 से अपने ग्राहकों को न्यूनतम बैलेंस से जुड़े शुल्क से मुक्ति दिलाने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। बैंक प्रबंधन के अनुसार यह कदम कृषक समुदाय, छोटे व्यापारियों, महिला उद्यमियों और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को उत्तम बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लिया गया है।
इससे पूर्व PNB में खाता रखने वाले ग्राहकों को उनकी शाखा के स्थान के आधार पर 400 से 600 रुपये तक का दंड शुल्क चुकाना पड़ता था यदि वे निर्धारित न्यूनतम राशि को बनाए नहीं रख पाते थे। परंतु अब यह वित्तीय बोझ पूर्णतः हटा दिया गया है, जिसका फायदा लाखों खाताधारकों को प्राप्त हुआ है। यह कदम बैंक की ग्राहकोन्मुखी सोच को दर्शाता है और आम जनता में बैंकिंग सेवाओं के प्रति विश्वास बढ़ाता है।
HDFC बैंक की वर्तमान व्यवस्था
प्राइवेट सेक्टर के जाने-माने बैंक HDFC में अभी तक न्यूनतम शेष धनराशि रखने की अनिवार्यता जारी है। इस बैंक में क्षेत्रीय आधार पर न्यूनतम बैलेंस की सीमा भिन्न-भिन्न तय की गई है। मेट्रो शहरों में खाताधारकों को 10,000 रुपये, अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 5,000 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 2,500 रुपये की न्यूनतम धनराशि रखनी अनिवार्य है।
जब कोई ग्राहक इस निर्धारित सीमा को पूर्ण नहीं कर पाता, तो उसे 600 रुपये तक अथवा कमी का 6 प्रतिशत (दोनों में से जो भी कम हो) दंड स्वरूप भुगतान करना पड़ता है। HDFC बैंक के बचत खातों पर सालाना ब्याज दर लगभग 3 प्रतिशत है, जो दैनिक औसत शेष राशि के आधार पर प्रत्येक तिमाही में खाते में जमा की जाती है। हालांकि यह बैंक अन्य कई सेवाओं और सुविधाओं में बेहतर है, लेकिन न्यूनतम बैलेंस की शर्त अभी भी कायम है।
बैंकिंग सेवाओं में पारदर्शिता की आवश्यकता
ग्राहकों के लिए यह जरूरी है कि वे खाता खोलते समय संबंधित बैंक की सभी नीतियों को ध्यानपूर्वक समझ लें। न्यूनतम बैलेंस, लेनदेन शुल्क, ब्याज दरें और अन्य प्रभार के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करना हर खाताधारक का अधिकार है। बैंकों को भी अपनी सभी शर्तों को स्पष्ट और सरल भाषा में ग्राहकों के सामने रखना चाहिए।
भारतीय बैंकिंग उद्योग में हो रहे ये परिवर्तन आम जनता के हित में उठाए गए सकारात्मक प्रयास हैं। SBI और PNB द्वारा न्यूनतम बैलेंस की बाध्यता समाप्त करने से करोड़ों लोगों को वित्तीय राहत प्राप्त हुई है। यह कदम वित्तीय समावेशन और डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने में भी सहायक है। हालांकि HDFC जैसे निजी बैंकों में यह नियम अभी भी प्रभावी है, परंतु आशा की जा सकती है कि भविष्य में वे भी अपनी नीतियों में ग्राहक हितैषी संशोधन करेंगे।
बैंक चुनते समय ग्राहकों को अपनी आर्थिक स्थिति, लेनदेन की आवश्यकता और बैंक की नीतियों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए। सही जानकारी और सतर्कता से ही बैंकिंग सेवाओं का अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है। यह सुधार न केवल आम जनता के लिए राहत लेकर आए हैं बल्कि देश की वित्तीय प्रणाली को और अधिक समावेशी और सुलभ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।